भजन से लाभ: Bhajan Se Labh

· Shree Paramhans Swami Adgadanandji Ashram Trust
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नवयुवकों की जिज्ञासाएँ  और भजन से लाभ – दिनांक २० सितम्बर से ३ नवम्बर २०१० तक की अवधि में फरीदाबाद, हिमाचल प्रदेश, नैनीताल एवं नेपाल के समीपवर्ती पर्वतीय क्षेत्रों के भ्रमण के समय नवयुवकों ने भजन एवं अध्यात्म के औचित्य की जिज्ञासाएँ महाराजश्री से कीं। 

इस पुस्तिका में नवयुवकों के अनेक प्रश्नों का संक्षेप में समाधान करते हुए भजन की अनिवार्यता पर प्रकाश डाला गया है। यदि एक परमात्मा में मानसिक स्तर से लगते बन गया तो उन प्रभु के संरक्षण में साधना चलती रहेगी, वाह्य कार्यों में भी मदद मिलेगी और आवागमन से मुक्ति तो मिलना ही है क्योंकि ईश्वर-पथ में आरम्भ का नाश नहीं होता। 

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अंकुश बाबा अंकुश
February 17, 2021
ऐसे महापुरुष युगो युगो में होते हैं कलयुग में विश्व गुरु स्वामी अड़गड़ानंद जी महाराज उनके चरणों में साष्टांग प्रणाम अंकुश
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Madan Pal
December 15, 2022
स्वामी जी के श्रीमुख से निसृत हर एक शब्द निसंदेह यथार्थ है। सतगुरु जी की महिमा का सटीक वर्णन स्वामी जी ने अद्वितीय रुप से किया है। ऐसे साहित्य को सभी स्तर के साधक पढकर लाभ उठा सकते हैं। हर शंका का समाधान है। अद्भुत है।
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Jagdish chandra Sharma
October 5, 2019
बहुत ही उपयोगी जानकारी है। सभी को इसका अध्ययन अत्यावश्यक है। अनुकरणीय अनुशीलन के योग्य
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About the author

यथार्थ गीता के प्रणेता

योगेश्वर सद्गुरु श्री अड़गड़ानन्द जी महाराज।।

जीवन परिचय


स्वामी श्री अड़गड़ानन्द जी महाराज सत्य की शोध में इतस्ततः विचरण करते तेईस वर्ष की आयु में नवम्बर 1955 ई. को परमहंस स्वामी श्री परमानन्दजी की शरण में आये। श्री परमानन्द जी का निवास चित्रकूट, अनुसूइया, सतना मध्यप्रदेश (भारत) के घोर जंगल में रहा है, जो हिंसक जीव-वस्तुओं का निवास है। ऐसे निर्जन अरण्य में बिना किसी व्यवस्था के उनका निवास, घोषित करता है कि वे एक सिद्ध महापुरुष थे।

पूज्य परमहंस जी को आपके आगमन के संकेत वर्षों पूर्व ही मिलने लगे थे। जिस दिन आप आये परमहंस जी को ईश्वरीय निर्देश मिला, जिसे भक्तों से बताते हुए उन्होंने कहा कि एक बालक भवसरिता से पार जाने के लिए विकल है, आता ही होगा। आप पर दृष्टि पड़ते ही उन्होंने बताया कि वह बालक यही है। गुरू निर्देशन में चलते हुए, साधना के चरमोत्कर्ष पर परमात्मा का प्रत्यक्ष दर्शन कर, आप उसी परमात्म भाव को प्राप्त महापुरुष हैं।

आपकी शैक्षिक उपाधियाँ तो कोई भी नहीं, लेकिन सद्गुरु- कृपा से पूर्णता प्राप्त कर मानवमात्र के कल्याण में रत हैं... ‘सर्वभूतहितरतं।’ लेखन को आप साधन-भजन में व्यवधान मानते रहे हैं किन्तु गीता भष्य ‘यथार्थ गीता’ के प्रणयन में ईश्वरीय निर्देशन ही निमित्त बना।

भगवान ने आपको अनुभव में बताया कि आपकी सारी वृत्तियाँ शान्त हो चुकी हैं, केवल छोटी-सी एक वृति शेष है, गीताज्ञान के आशय का यथावत् पुनप्रकाशन! पहले तो आपने इस वृत्ति को भजन से काटने का प्रयास किया किन्तु... भगवान के आदेशों का मूर्तरूप है- ‘यथार्थ गीता’।

यथार्थ गीता के रचना काल में भाष्य में जहां भी त्रुटि होती, भगवान उसे सुधार देते थे! पूज्यश्री की ‘स्वान्तः सुखाय’ यह कालजवी कृति सर्वान्तः सुखाय हो चली है। आर्यावर्त भारत ही नहीं विश्व के मानवमात्र के कल्याण में रत है, संलग्न है।

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