भजन किसका करें: Bhajan Kiska Karain

· Shree Paramhans Swami Adgadanandji Ashram Trust
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भजन किसका करें ? - आदि धर्मशास्त्र गीता एवं अन्य योगशास्त्रों के अनुसार एक परमात्मा की पूजा एवं उसकी प्राप्ति की एक निर्धारित क्रिया (नियत कर्म) के स्थान पर असंख्य पूजा पद्धतियाँ प्रचलन में हैं। लोग गाय, पीपल, देवी-देवताओं, भूत-भवानी की पूजा, धर्म के नाम पर कर रहे हैं। प्रस्तुत पुस्तक में इन सभी भ्रान्तियों का निवारण करते हुए स्पष्ट किया गया है कि सनातन धर्म क्या है ? इष्ट कौन है ? भजन किसका करें ? एवं कैसे करें ? पूर्वाग्रहों से मुक्त मस्तिष्क द्वारा इस पुस्तिका का अध्ययन एवं मनन आपको झकझोर देगा, भजन किसका करें, स्पष्ट हो जायेगा। साधना-पथ के पथिक की यह प्राथमिक पुस्तक है। अवश्य पढ़ें।

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November 5, 2018
जीवन में कम से कम एक बार अवश्य पढ़ें ऊँ श्री सद्गुरू देव भगवान की जय
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manoj tripathi
October 7, 2018
ऊँ हर हर हर महादेव गुरुदेव की हर पुस्तक अद्वितीय अकल्पनीय व ज्ञान की सरिता है।किन्तु श्रद्धा भाव व बुद्धि होनी चाहिए ।
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ROHIT SINGH2504
December 2, 2018
अपने हृदय देश में किसी तत्वदर्शी सद्गुरु के माध्यम से आप किसी एक परमात्मा का चिंतन कर सकते हैं बहुत सुंदर रचना है सभी इसे जरूर पढ़ें और अपने जीवन में क्रियान्वित करें ॐ ॐ ॐ
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About the author

यथार्थ गीता के प्रणेता


योगेश्वर सद्गुरु श्री अड़गड़ानन्द जी महाराज।।


जीवन परिच


स्वामी श्री अड़गड़ानन्द जी महाराज सत्य की शोध में इतस्ततः विचरण करते तेईस वर्ष की आयु में नवम्बर 1955 ई. को परमहंस स्वामी श्री परमानन्दजी की शरण में आये। श्री परमानन्द जी का निवास चित्रकूट, अनुसूइया, सतना मध्यप्रदेश (भारत) के घोर जंगल में रहा है, जो हिंसक जीव-वस्तुओं का निवास है। ऐसे निर्जन अरण्य में बिना किसी व्यवस्था के उनका निवास, घोषित करता है कि वे एक सिद्ध महापुरुष थे।


पूज्य परमहंस जी को आपके आगमन के संकेत वर्षों पूर्व ही मिलने लगे थे। जिस दिन आप आये परमहंस जी को ईश्वरीय निर्देश मिला, जिसे भक्तों से बताते हुए उन्होंने कहा कि एक बालक भवसरिता से पार जाने के लिए विकल है, आता ही होगा। आप पर दृष्टि पड़ते ही उन्होंने बताया कि वह बालक यही है। गुरू निर्देशन में चलते हुए, साधना के चरमोत्कर्ष पर परमात्मा का प्रत्यक्ष दर्शन कर, आप उसी परमात्म भाव को प्राप्त महापुरुष हैं।


आपकी शैक्षिक उपाधियाँ तो कोई भी नहीं, लेकिन सद्गुरु- कृपा से पूर्णता प्राप्त कर मानवमात्र के कल्याण में रत हैं... ‘सर्वभूतहितरतं।’ लेखन को आप साधन-भजन में व्यवधान मानते रहे हैं किन्तु गीता भष्य ‘यथार्थ गीता’ के प्रणयन में ईश्वरीय निर्देशन ही निमित्त बना।


भगवान ने आपको अनुभव में बताया कि आपकी सारी वृत्तियाँ शान्त हो चुकी हैं, केवल छोटी-सी एक वृति शेष है, गीताज्ञान के आशय का यथावत् पुनप्रकाशन! पहले तो आपने इस वृत्ति को भजन से काटने का प्रयास किया किन्तु... भगवान के आदेशों का मूर्तरूप है- ‘यथार्थ गीता’। यथार्थ गीता के रचना काल में भाष्य में जहां भी त्रुटि होती, भगवान उसे सुधार देते थे! पूज्यश्री की ‘स्वान्तः सुखाय’ यह कालजवी कृति सर्वान्तः सुखाय हो चली है। आर्यावर्त भारत ही नहीं विश्व के मानवमात्र के कल्याण में रत है, संलग्न है।

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