अनाकलनीये प्रश्न

· Shree Paramhans Swami Adgadanandji Ashram Trust
৪.৩
২৩টি রিভিউ
ই-বুক
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এই ই-বুকের বিষয়ে

अनाकलनीये प्रश्न - ह्या पुस्तिकेत वर्ण, मूर्तिपूजा, ध्यान, हठ, चक्रभेदना आणि योग, हिंदू धर्म एखाद्या जीवनशैलीचे नाव आहे का, हिंदुत्व यांसारखे विषय स्पष्ट करून भ्रमित समाजाला मार्गदर्शन केलेले आहे.

রেটিং ও পর্যালোচনাগুলি

৪.৩
২৩টি রিভিউ

লেখক সম্পর্কে

यथार्थ गीतेचे प्रणेते

योगेश्वर सद्गुरू श्री अड़गड़ानन्द महाराज

जीवन परिचय


स्वामी अड़गड़ानन्द जी महाराज सत्याच्या शोधात इतस्तत: भटकंती करीत वयाच्या तेवीसाव्या वर्षी नोव्हेंबर १९५५ मध्ये परमहंस स्वामी श्री. परमानंदजींना शरण गेले.
श्री परमानंदजी चित्रकूट, अनुसुया, सतना मध्यप्रदेश (भारत) मधील घनदाट जंगलात राहत होते, जेथे हिंस्त्र श्वापदांचा वावर होता. अशा निर्जन अरण्यात कोणत्याही व्यवस्थेशिवाय त्यांनी राहण्याचा अर्थ असा होतो की ते एक सिद्ध महापुरुष होते.

पूज्य परमहंसजींना त्यांच्या आगमनाचे संकेत काही वर्षांपूर्वीच प्राप्त व्हायला लागले होते. ज्या दिवशी ते पोहोचले, परमहंसजींना ईश्वरीय निर्देश मिळाला, ज्याविषयी भक्तांना सांगताना ते म्हणाले की एक बालक भवसागर पार करण्यासाठी व्याकूळ झालेले आहे, ते आता येईलच. त्यांच्यावर दृष्टी पडताच त्यांनी सांगितले की, ते बालक हेच आहे. गुरुंच्या निर्देशानुसार साधनेचा परमोच्च बिंदू गाठून परमात्म्याचे प्रत्यक्ष दर्शन घेऊन ते परमात्म भाव प्राप्त केलेले महापुरुष आहेत.

त्यांच्याकडे कोणतीही शैक्षणिक पदवी नव्हती, परंतु सद्गुरुकृपेने पूर्णत्व प्राप्त करून मानवाच्या कल्याणासाठी कार्यरत आहेत... ‘सर्वभूतहितरतं’. लेखनाला ते साधन-भजनात अडथळा मानीत आले, परंतु गीतेवरील भाष्य ‘यथार्थ गीता’ लिहिताना ईश्वराचा आदेश हेच निमित्त होते.

ईश्वराने त्यांना दृष्टांत देऊन सांगितले की, त्यांच्या सर्व इच्छा पूर्ण झालेल्या आहेत, केवळ एक छोटासी इच्छा शिल्लक आहे, गीताज्ञानाच्या अर्थाचे यथायोग्य पुन:प्रकाशन! पहिल्यांदा त्यांनी ह्या इच्छेला भजनाच्या माध्यमातून पूर्ण करण्याचा प्रयत्न केला पण... ईश्वराच्या आदेशाचे मूर्त रूप आहे - ‘यथार्थ गीता’. यथार्थ गीता लिहिण्याच्या काळात भाष्य करताना जेथे त्रुटी राहत होती, तेथे भगवान स्वत: तेथे दुरुस्त करीत होते. पूज्यश्रींच्या ‘स्वात: सुखाय’ ही कलाकृती सर्वांत: सुखाय बनलेली आहे. आर्यावर्त भारतच नव्हे तर जगभरातील मानवांच्या कल्याणासाठी कार्यरत आहे, झटत आहे.

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